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भूमि अधिग्रहण विधेयक

क्या आर्थिक विकास और सामाजिक समानता एक दूसरे से अलग हो सकते हैं? यह मौजूदा दौर के सबसे प्रासंगिक सवालों में से एक है। बेशक, आधारभूत विकास और मौद्रिक विकास हमारे देश के लिये महत्वपूर्ण है, लेकिन ये लोगों की कीमत पर नहीं हो सकता, यह किसानों की कीमत पर नहीं हो सकता और यह गरीबों की कीमत पर नहीं हो सकता। भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 (एलएआरआर) किसानों और गरीबों को अमीर कंपनियों तथा सार्वजनिक निजी भागीदारी के नाम पर शोषण से बचाने के लिए तैयार किया गया है। हमारा मानना है कि इस अधिनियम को लागू करना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि यह कानून अक्षरशः लागू किया जाए।

आज जो स्थिति है, उसमें सरकार सार्वजनिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिए भारी मात्रा में अधिग्रहित भूमि को जमा करने की दोषी है, जिनका अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं हो पाया है। खास तौर पर पिछले एक दशक के दौरान जब भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से प्रगति कर रही थी, उसी दौरान किसानों को कैपिटल अप्रीसिएशन (बाजार मूल्य बढ़ने के आधार पर परिसम्पत्ति के मूल्य में होने वाली वृद्धि) की दृष्टि से भारी नुकसान उठाना पड़ा है। यूपीए सरकार द्वारा लागू 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में पांच साल के अंदर अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल न होने पर उसकी वापसी का प्रावधान किया गया था। यूपीए सरकार की किसान समर्थक भूमि अधिग्रहण नीतियों की विरासत का अनुसरण करते हुए एलएआरआर अधिनियम को कार्पोरेट के हित में नहीं, बल्कि खास तौर पर किसानों के हित को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इस अधिनियम के तहत भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में सामाजिक प्रभाव आकलन सर्वेक्षण शामिल है, जो जमीन के अधिग्रहण की इजाजत से पहले कई तरह से नियंत्रण और संतुलन करता है। उदाहरण के लिए, अधिग्रहण का इरादा जाहिर करने वाली प्रारंभिक अधिसूचना जारी की जानी चाहिए, तयशुदा तारीख तक मुआवजा दिया जाना चाहिए और अधिग्रहण से प्रभावित व्यक्तियों का पुनर्वास होना चाहिए।

मुआवजे के संदर्भ में, यूपीए सरकार ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए उचित मुआवजे पर जोर दिया, इसलिए ग्रामीण इलाकों के लिए यह दर बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी इलाकों के लिए दो गुना होनी चाहिए। ऐसे मामलों में जहां भूमि निजी कंपनियों द्वारा या सार्वजनिक निजी साझेदारी के मामलों में अधिग्रहण की जा रही है, वहां संगठन को विस्थापित होने वाले 80 प्रतिशत लोगों की सहमति लेनी जरुरी होगी। ऐसे मामलों में, कॉर्पोरेट को विस्थापित लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की व्यवस्था भी करनी होगी। अधिनियम को इस तरह से तैयार किया गया था कि भूमि अधिग्रहण निष्पक्ष और न्यायसंगत दोनों हो, यह किसानों को बहुत लाभ पहुंचाता है और सुनिश्चित करता है कि उनकी जमीन का उनकी सहमति के बिना अधिग्रहण न किया जा सके - यह उन मामलों पर भी लागू होना चाहिए- जब किसान अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ हों, तो भी उनकी जमीन उनकी ही रहती है। सरकार को कर्ज वसूलने के वैकल्पिक तरीकों को तलाशना चाहिए।

ऐसे देश में जहां 70 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, वहां एलएआरआर बेहद महत्वपूर्ण है, विशेषकर लोगों को वह खो देने से बचाने के लिए, जो अधिकारपूर्वक उन्हीं का है। एलएआरआर के लाभ गरीबों के लिये, किसानों के लिये और वंचितों के लिये हैं। एलएआरआर विधेयक को पारित कराने के लिए किया गया संघर्ष पूरी तरह सार्थक साबित हुआ, क्योंकि इसका फायदा उन लोगों को मिलेगा, जिन्हें इसकी बहुत ज्यादा जरुरत है, कांग्रेस कभी ऐसे लोगों का साथ देना नहीं छोड़ेगी, इन्हीं लोगों ने राष्ट्र निर्माण में मदद की है और यही लोग हमारे जाने के बाद भी ये काम करते रहेंगे।

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