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रोज़गार और एमएसएमई

हर साल 1.2 करोड़ युवा रोज़गार की तलाश में नौकरी बाजार में दाखिल होते हैं। इनमें से ज्यादातर हाईस्कूल पास या उससे भी कम शिक्षित होते हैं और वे बड़ी शिद्दत से अपने जीवन में बदलाव लाने के साधन तलाश रहे होते हैं। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने प्रशासनिक तंत्र को ऐसे व्यवस्थित करे, जो इन भारतीय युवाओं की जरुरतों के लिहाज से बिल्कुल उपयुक्त हो।

भारत में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने वाले आर्थिक दृष्टिकोण के संदर्भ से, समझदारी भरा फैसला यही होगा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की तर्ज पर कारगर उपायों को अपनाया जाए, लेकिन उन्हें मौजूदा आर्थिक माहौल के अनुरूप ढाला भी जाए। कांग्रेस पार्टी प्रबल रूप से समय की जरुरत के मुताबिक लचीला रुख अपनाती आई है। हमारी नीतियां हमेशा से लोगों की जरूरतों के मुताबिक रही हैं और आगे भी रहेंगी। इस समय सबसे प्रमुख आवश्यकता रोज़गार सृजन तथा सही राजनीतिक और वित्तीय आधारभूत संरचना स्थापित करने की है, ताकि हमारे छोटे और मझोले उद्यमों को वैश्विक स्तर पर प्रभावपूर्ण बनने में सहायता की जा सके।

विकास और उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए हमें संतुलित श्रम नीति बनाने की आवश्यकता है, इसके साथ ही श्रमिकों को सुरक्षा, लाभदायक मजदूरी और त्वरित न्याय प्रणाली प्रदान करने की भी आवश्यकता है। इसी प्रकार हमें सुनिश्चित करना होगा कि ठेका श्रमिकों को शोषण से बचाने और ‘समान कार्य - समान वेतन’ के प्रावधानों को कड़ाई से लागू किया जाए। हम हमेशा समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा और उत्थान सुनिश्चित करने पर ध्यान देते आए हैं, एकीकृत श्रम नीति केवल हमारे नागरिकों की हिफाजत ही नहीं करेगी, बल्कि अर्थव्यवस्था की मजबूती और समृद्धि भी सुनिश्चित करेगी। हालांकि, हमारी अर्थव्यवस्था की प्रगति की दृष्टि से, नयी नौकरियों का सृजन समय की जरुरत है। हमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रवार रोज़गार सृजन करना होगा। बहुत आवश्यक है कि हम विकास के साधन के तौर पर घरेलू खपत को बढ़ावा दें, निर्यात में तेजी लाएं और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) पर ध्यान केंद्रित करके संगठित और असंगठित क्षेत्र में रोज़गार के विस्तार के लिए सभी जरुरी कदम उठाएं।

मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक ढांचा विशेष तौर पर बड़ी कंपनियों का हित साधने वाला है, वे बैंकिंग प्रणाली पर अपना एकाधिकार कर रही हैं, जबकि एमएसएमई को बैंक से छोटा सा कर्ज लेने के लिये भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। चूंकि एमएसएमई हमारी अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं, इसलिए हमें अपने नजरिये में तेजी से बदलाव लाना होगा और उनके लिए व्यापार करने में आसानी को प्राथमिकता देनी होगी। ऐसा करके ही नयी नौकरियां सृजित हो पायेंगी। चीन के विपरीत, हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था हमें भयाक्रांत माहौल वाली बड़ी फैक्टरियां बनाने की इजाजत नहीं देती, इसलिए हमें छोटे व्यवसायों को वैश्विक उत्कृष्टता हासिल करने में सहायता देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत की असली ताकत लाखों छोटी कंपनियों और युवा उद्यमियों में है, इसलिये ये जरुरी है कि हम एमएसएमई के लिये जगह बनाएं, ताकि वे हमारी अर्थव्यवस्था में फल-फूल सकें। हमें दुनिया भर के विशेषज्ञों को लाने की जरूरत हैं, ताकि वे इन छोटी और मध्यम कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों में तब्दील करने में हमारी मदद कर सकें।

भारत में जब भी अर्थव्यवस्था की बात होती है, तो हमेशा विकास पर ही चर्चा होती है। बेशक, विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन यदि वही विकास रोज़गार के साधनों का सृजन नहीं कर पाये तो वह पूरी तरह अर्थहीन हो जाता है। हमारी अर्थव्यवस्था की प्रगति और हमारी जनता की खुशहाली के लिए यह जरूरी है कि हम अपने नजरिये में महत्वपूर्ण बदलाव लाते हुए लाखों नयी नौकरियां सृजित करने, श्रमिकों को सशक्त बनाने और एमएसएमई को उनके विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ें।

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