Trible Rights

आदिवासी अधिकार

70 साल पहले भारत ने खुद को उपनिवेशवादी देश की जगह, मुक्त और स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में परिवर्तित करने की दिशा में कई कदम उठाये। इस परिवर्तन के लिए प्रत्येक नागरिक को किसी न किसी तरह से बड़ा जोखिम उठाना पड़ा। आज, आजादी के 72 साल बाद, हम उस कड़ी मेहनत और बलिदान का लाभ उठा रहे हैं। मेरा और कांग्रेस पार्टी का यह मानना है कि चूंकि प्रत्येक भारतीय ने जोखिम उठाया है इसलिए उसका पुरस्कार भी सभी को मिलना चाहिए। हर भारतीय का यह अधिकार है कि उसे समान पहुंच, अवसर और स्वतंत्रता मिले चाहे, उसका कोई भी पंथ, जाति या जनजाति हो। हमारे लोगों और हमारी संस्कृतियों की अद्भुत विविधता ही भारत को विलक्षण और मजबूत बनाती है। हमें इस विविधता की रक्षा करने और इसकी चमक बरकरार रखने की जरूरत है।

इसे हासिल करने के लिए, हमें प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। हमारे देश के आदिवासियों को चंद गिने-चुने लोगों की सनक और चाहतों को पूरा करने के लिये किसी भी तरह के नुकसान, बेदखली, विस्थापन के डर के बिना स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार है। सरकार की भूमिका इन अधिकारों की रक्षा करने और अपने परिवार एवं समुदाय के लिए और अधिक अधिकार हासिल करने की इनकी राह को आसान बनाने की है।

आदिवासियों को उचित और विशेष प्रतिनिधित्व प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की है। हमारा मानना है कि अनुसूचित जाति विभाग के अलावा लक्षित जनजातीय मामलों के विभाग की स्थापना की जरूरत है-जिसका एकमात्र उद्देश्य आदिवासी हितों की रक्षा करना होगा। ऐसे विभाग के माध्यम से हमें उनकी जमीन की सुरक्षा के उपायों को लागू करने और यह सुनिश्चित की जरुरत है कि अन्य इच्छुक हितधारकों द्वारा इसका दुरुपयोग नहीं किया जाये। जिन मामलों में खनन के लिए जंगल की जमीन लेना जरूरी है, उसके लिये हमें ऐसा तंत्र बनाना चाहिए जो आदिवासियों को भी विकास में हितधारक बनाए।

मेरा मानना है कि हमें इन समुदायों से काफी कुछ सीखना चाहिए। हमारे देश के आदिवासी हमारे महान प्राकृतिक संसाधनों में से एक -हमारे जंगलों को -किसी अन्य की तुलना में कहीं बेहतर ढंग से समझते हैं। उन्होंने हमारे जंगलों में जीवन बिताया है और उससे सीखा है जबकि, बाकी दुनिया ने अभी-अभी यह महसूस करना शुरु किया है कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से कैसे रहना है। इन समुदायों को खुद को बनाए रखने और प्रगति करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है, इन्हें प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए और न ही कमतर आंकना चाहिए।

हमारा दृढ़ विश्वास है कि वन अधिकार अधिनियम को अक्षरशः लागू किया जाना आवश्यक है। यह कानून पिछले वन कानूनों के कारण हुए अन्याय को सुधारते हुए पारंपरिक रूप से जंगल में रहने वाले समुदायों को कानूनी मान्यता प्रदान करता है। यह इन समुदायों को वन और वन्यजीव संरक्षण के बारे में अपनी बात कहने का अवसर प्रदान करता है और स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करता है कि जंगल में रहने वाली अनुसूचित जनजाति किस तरह बनती है। जमीन और जमीन से जुड़े अधिकार प्रदान करने के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है। इस कानून के तहत, यदि जनजाति के पास जमीन का मालिकाना हक़ साबित करने के लिये जरुरी दस्तावेज नहीं हों, तो भी वे जब तक स्वयं खेती करते रहेंगे, 4 हेक्टेयर जमीन तक उनकी पहुंच रहेगी। विरासत के मामलों को छोड़कर जमीन किसी को भी बेची या स्थानांतरित नहीं की जा सकती। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून में समुदाय को वन भूमि की रक्षा और संरक्षण का अधिकार दिया गया है। वन माफिया, उद्योग और जमीन हड़पने वालों के खतरों से जंगल और वन्यजीवन की रक्षा करने वाले हजारों ग्रामीण समुदायों के लिए यह महत्वपूर्ण है।

देश के संविधान के सम्मान में, हमारा मानना है कि सभी नागरिकों से बराबरी का व्यवहार किया जाना आवश्यक है। हमें आदिवासियों, खास तौर पर आदिवासी युवाओं को विकास योजनाओं, कौशल निर्माण कार्यशालाओं को बढ़ावा देकर तथा ज्ञान साझा करने वाले मंचों तक उनकी पहुंच कायम करते हुए सशक्त बनाना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें भी वैसे ही समान अवसर और पहुंच मिले, जो बहुसंख्य भारतीयों को प्राप्त हैं।

इस देश के प्रत्येक नागरिक को अपने सपने साकार करने के लिये पूरी आजादी से जीने का अधिकार है। हम ऐसे राष्ट्र हैं, जो तब तक पूरी तरह स्वतंत्र होने का दावा नहीं कर सकते, जब तक केवल चंद लोगों को नहीं, लगभग सभी को नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक को सशक्त नहीं बना देते। हमारे देश के बेहद वंचित लोगों के लिये यह बात विशेष रूप से सही है। अगर हम अपने सबसे कमजोर लोगों की रक्षा करने और उनको सशक्त बनाने में असमर्थ हैं, तो क्या हम वास्तव में न्यायसंगत और बराबरी वाला समाज होने का दावा कर सकते हैं, जो सभी को सफल होने का अवसर प्रदान करता है?

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